महापुरुषों के ठगोरों के बीच दीनबन्धु की तलाश

विज्ञापनों की दुनिया में जो जगह और महत्व नारी देह को हासिल है, वही जगह और महत्व भारतीय राजनीति में गरीब और गरीबी का है। जिस तरह विज्ञापन सच नहीं बोलते ठीक उसी तरह भारतीय राजनीति भी गरीब और गरीबी को छलती है। मॉडल खुश होती है कि लोग उसे देख रहे हैं लेकिन बिक्री बढ़ती है चड्डी की। इधर गरीब के कष्ट दूर करने की बात कही जाती है उधर सेठ का शुद्ध मुनाफा दुगुना हो जाता है। सच के दुत्कार और झूठ के सत्कार की यह सनातन परम्परा दिन-प्रति-दिन पुष्ट होती जा रही है। आज भी यही हो रहा है। गरीबों की बेहतरी की दुहाई दी जा रही है और नीतियाँ बनाई जा रही हैं पूँजीपतियों की सुख-सेज सजाने की।

नोटबन्दी के प्रभाव से जमा रकम का हवाला देकर भारतीय स्टेट बैंक ने बचत खातों की ब्याज दर आधा प्रतिशत घटा कर चार से साढ़े तीन प्रतिशत कर दी। लेकिनएक करोड़ रुपये और इससे अधिक की नियमित जमा रकम वाले खाताधारकों को कोई नुकसान नहीं होगा। केवल उन्हीं खाताधारकों को आय में यह कमी झेलनी पड़ेगी जिनके खातों में जमा रकम एक करोड़ रुपयों से कम है। एक निजी बैंक ने भी 50 लाख तक के जमा पर ब्याज दर में 0.25 प्रतिशत की कमी का दी है। भारतीय स्टेट बैंक के प्रबन्ध निदेशक रजनीश कुमार के मुताबिक 90 प्रतिशत से अधिक खातेदार एक करोड़ से कम जमा रकमवाले हैं। मेरे मुहल्ले में और मेरे लगभग हजार पॉलिसीधारकों में से एक के भी खाते में पचास लाख न तो आज जमा हैं न ही कभी हो सकेंगे। सीधा सन्देश है - कम पैसेवाला होने की सजा तो भुगतनी ही होगी। 

नीमच निवासी आरटीआई कार्यकर्ता चन्द्र शेखर गौड़ के मुताबिक 2013 से 2015 के तीन वर्षों में रेल्वे ने गर्मी के मौसम में, सामान्य किरायेवाली विशेष रेलें चला कर लोगों को राहत दी। इन रेलों ने 2999 फेरे लगाए। लेकिन दिनोंदिन बढ़ती यात्री संख्या के बावजूद 2016 और 2017 की गर्मियों में रेल्वे ने सामान्य किरायेवाली एक भी विशेष रेल नहीं चलाई। हाँ, सामान्य से डेड़ गुना तथा इससे भी अधिक मँहगे किरायेवाली समर स्पेशल और प्रीमीयम रेलें चलाईं। इन रेलों ने 614 फेरे लगाए। रेल्वे का सारा जोर ऐसी ही रेलें चलाकर अपना खजाना भरने पर रहा। लेकिन रेल्वे यहीं नहीं रुका। रेल किराए में रियायत की 64 श्रेणियाँ हैं। मँहगे किराएवाली इन विशेष रेलों में रेल्वे ने एक भी श्रेणी में किराये में रियायत नहीं दी। 

तीन महीनों से अधिक समय से मैंने अखबारों और टीवी से दूरी बना रखी है। लेकिन ‘दुखी आत्माएँ’ रोज दो-एक अखबारों के चुनिन्दा समाचार मुझे पढ़वा ही देती हैं। इन्हीं से मैंने जाना कि पहले नोटबन्दी और अब जीएसटी तथा सरकार की ऐसी ही नीतियों के कारण सूरत की चालीस प्रतिशत स्पिनिंग इकाइयाँ और कपड़ा व्यापार की 90 ‘छोटी’ दुकानें बन्द हो गईं। सूरत की ऐसी एक ‘छोटी’ दुकान मेरे कस्बे की तीन बड़ी दुकानों के बराबर है। भीलवाड़ा की कमजोर कपड़ा मिलें बन्द होती जा रही हैं। लगभग 250 इकाइयाँ बन्द हो चुकी हैं और मझौली मिलों ने कामकाज कम कर दिया है। इन सबसे जुड़े मालिक लोग निश्चिय ही प्रभावित हुए होंगे लेकिन वे सब ‘उद्यमी’/व्यापारी हैं। थोड़ी ही सही, उनके हाथ में पूँजी तो है। हाथ-पाँव मारकर आज नहीं तो कल, कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेंगे और तब तक ढंग-ढाँग से जी ही लेंगे। लेकिन इन सारे उपक्रमों से जुड़े, रोज कुआ खोदकर पानी पीनेवाले कर्मचारियों, मजदूरों का क्या? 

चारों ओर यही तस्वीर नजर आती है। स्वास्थ्य और शिक्षा पर साल-दर-साल होती जा रही  बजट कटौती, घटता व्यापार, बढ़ती बेरोजगारी, बन्द होते जा रहे छोटे-बड़े कल-कारखाने, बाजार में बढ़ती जा रही नाणा तंगी, छोटी दुकानों को निगलती जा रही बड़ी दुकानें/मॉल, प्रतिदिन बढ़ता जा रहा किसान-आत्म हत्याओं का आँकड़ा। दसों दिशाओं में दहशत और हताशा व्याप्त है। सरकार का हर जतन घोषणा होते ही डराता है। 

शिक्षा आदमी को सजग, सावधान, कर्मठ बनाती है। लेकिन लगता है, सुनियोजित तरीके से गरीबों को शिक्षा से दूर किया जा रहा है। एक ओर तो ‘स्कूल चलें हम’ अभियान पर करोड़ों खर्च हो रहे हैं लेकिन छात्र संख्या कम होने के कारण स्कूलों का विलीनीकरण हो रहा है। स्कूलों की संख्या साल-दर-साल कम होती जा रही है। गरीब बस्तियों और झोंपडपट्टियों से स्कूलों की भौगोलिक दूरी बढ़ती जा रही है। सरकारी कागजों में गरीब छात्रों को छात्रवृत्ति नियमित रूप से, निर्धारित समय पर मिल रही है लेकिन बच्चों के हाथ में फूटी कौड़ी नहीं आ रही। उनके खाते में रकम जमा होने की सूचना बच्चों को मिलेै उससे पहले ही ‘मिनिमम बेलेंस’ के नाम पर पूरी रकम कट जाती है। 

मानो यह सब कम पड़ रहा हो इसलिए बची-खुची कसर ‘द कोड ऑन वेजेस 2017’ ने पूरी कर दी। दस अगस्त को लोक सभा में पेश यह अधिनियम पूरी तरह से ‘मालिक’ की चिन्ता में तैयार किया लगता है। इसके अनुसार अब घण्टों के हिसाब से मजदूरी दी जा सकेगी। अपना श्रम बेचने के लिए, सूरज उगने के साथ ही मजदूर-मण्डी में खड़े होनेवाले मजदूर को अब आधे दिन के लिए ही काम मिलेगा। जबकि उसे और उसके परिवार को भूख पूरे दिन की लगती है। बाकी आधे दिन की मजदूरी तो मिलने से रही! सो, ‘और कुछ नहीं तो दो-एक कप चाय ही मिल जाएगी’ सोच कर वह मजदूर बाकी आधे दिन बिना मजदूरी के काम करेगा। आधे दिन की मजदूरी पर अब ‘मालिक’ को पूरे दिन के लिए मजदूर मिल जाएगा।

सरकारों को वही नजर आता है जो वे देखना चाहती हैं। परदेसी मेहमानों को दिखाने के लिए उनके पास काफी-कुछ होता है। फोर्ब्स की, दुनिया के अरबपतियों की सूची के पहले सौ लोगों में चार भारतीयों की उपस्थिति देश के अनगिनत भूखे-नंगे, बेरोजगारों को ढक देती है। इन चार की अमीरी परेदसियों को भरोसा दिलाती है - भारत अमीरों का देश है। वे जान नहीं पाते कि भारत गरीबों का अमीर देश है। 

कहा जाता है कि दुनिया के तमाम महापुरुष अपने अनुयायियों से ही ठगे गए। लेकिन भारत में यह कहावत तनिक आगे बढ़ जाती है - ‘दुनिया के तमाम महापुरुष अपने अनुयायियों द्वारा ही बेचे गए।’ काँग्रेसियों ने गाँधी को बेचा। लेकिन वे ‘हीन महत्वाकांक्षी दुकानदार’ थे। सत्तर बरसों में भी गाँधी के ‘अन्तिम आदमी की चिन्ता’ के विचार को पूरी तरह नहीं बेच पाए। इसके विपरीत हमारे मौजूदा शासक अधिक आक्रामक विपणन योजनावाले, अतिमहत्वांकाक्षी, कुशल व्यापारी हैं। तीन बरसों में ही दीनदयाल उपाध्याय के ‘अन्त्योदय’ को भरपूर मुनाफे के साथ सफलतापूर्वक बेचने में कामयाब हो रहे। 

गरीब होना हमारे समाज में अभिशाप है। गरीब की सदैव मौत ही होनी  है। तय करना मुश्किल होता है कि गरीब रोज मर-मर कर जी रहा है या जी-जी कर मर रहा है। हमारी मौजूदा सरकार ‘संघ’ निर्देशित, शासित, संचालित है। ‘संघ’ भारतीय संस्कृति और भारतीयता पर अपना एकाधिकार जताता है। इसी भारतीय सस्ंकृति और भारतीयता को कवि रहीम ने उजागर करते हुए बड़ों को सूचित किया है -

दीन सबन को लगख है, दीनही लखे न कोय।
जो रहीम दीनही लखे, दीनबन्धु सम होय।।

दीनबन्धु बनने के लिए लीलाधारी, योगीराज कृष्ण को, सिंहासन से उतर कर, नंगे पाँव चल कर दरवाजे तक आना पड़ता है - सुदामा को गले लगाने के लिए। हमारे शासक ऐसा करें तभी सुदामा के दिन फिरें।
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(दैनिक ‘सुबह सवेरे’, भोपाल में, 02 सितम्बर 2017 को प्रकाशित)

3 comments:

  1. कौन बनेगा करोड़पति में भी अमिताभ बच्चन ही करोड़पति/अरबपति बन रहे है । बाकी प्रतियोगी तो हज़ार या लाख से आगे नहीं बढ़ पाते,हा प्रायोजक,आयोजक के भी अरबपति में इजाफा हो रहा है । अच्छा है,ग़रीब ही खत्म हो जाएंगे तो ग़रीबी अपने आप समाप्त हो जाएगी ।

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  2. कौन बनेगा करोड़पति में भी अमिताभ बच्चन ही करोड़पति/अरबपति बन रहे है । बाकी प्रतियोगी तो हज़ार या लाख से आगे नहीं बढ़ पाते,हा प्रायोजक,आयोजक के भी अरबपति में इजाफा हो रहा है । अच्छा है,ग़रीब ही खत्म हो जाएंगे तो ग़रीबी अपने आप समाप्त हो जाएगी ।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (03-09-2017) को "वक़्त के साथ दौड़ता..वक़्त" (चर्चा अंक 2716) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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