चीनी सामान, देश-भक्ति याने फिक्र का जिक्र

हम प्रतीकीकरण के चरम समय में जी रहे हैं। पाखण्ड और प्रदर्शन ने आचरण को खारिज कर विस्थापित कर दिया है। देश-भक्ति इस पाखण्ड प्रदर्शन का सर्वोत्कृष्ट, श्रेष्ठ-उपयोगी और श्रेष्ठ परिणाम देनेवाला तत्व बन गया है। चोरी-कालाबाजारी करो, गरीबों को लूटो, सेक्स रेकेट चलाओ, देश के विरुद्ध जासूसी करो, संविधान की भावनाओं की हत्या करो लेकिन यदि वन्दे मातरम् का नारा लगा दिया तो आप प्रशंसनीय और अनुकरणीय देश भक्त हैं। आप ईमानदारी से देश के सारे कानून मान रहे हैं, सपने में भी देश का अहित नहीं सोचते, संविधान को अपने धार्मिक ग्रन्थ की तरह मानकर उसकी भावनाओं, उसके निर्देशों का पालन करते हैं लेकिन वन्दे मातरम् नहीं कह पाते हैं तो आप देशद्रोही हैं, आपने खुद को पाकिस्तान भेजे जाने की पात्रता हासिल कर ली है।

कोई बीस-बाईस बरस पहले एक सज्जन ने सुनाया था - ‘काम मत कर। काम की फिक्र कर। फिक्र का जिक्र कर। तेरा प्रमोशन पक्का।’ देशभक्ति के नाम पर आज यही हो रहा है। 

पहली अगस्त से देश में एक अभियान शुरु हुआ है - चीनी सामान का बहिष्कार करने का। वस्तुतः यह इस अभियान का दूसरा भाग है। पहला भाग गत वर्ष दीपावली पर सम्पन्न हुआ था। तब हमने चीन निर्मित पटाखों, फुलझड़ियों, झालरों का बहिष्कार किया था। देश भक्ति जताई थी। खूब खुश हुए थे। पटाखे फोड़ कर खुशी जताई थी। यह अलग बात है कि खुशी के आवेग में भूल कर चीनी पटाखे ही फोड़ बैठे। 

देश भक्ति और राष्ट्र प्रेम के अधीन अपनी शक्ति, अपनी क्षमता, अपना इतिहास ही भूल बैठे। यह भूलना कोई रणनीति है या भावावेग - इस पर बहस की जा सकती है। हम भूल गए कि चोर को नहीं, चोर की माँ को मारना चाहिए। हम भूल गए कि खरीदनेवालों के मुकाबले बेचनेवाले बहुत कम हैं। ये बेचनेवाले हमारे अपने ही लोग हैं। याद नहीं आया कि इनसे कहें कि चीनी सामान न बेचें। अपनी सरकार बनाने के लिए दूसरी पार्टी के विधायकों को खरीदने को सही बताते हुए, अभी-अभी अनुपम खेर ने कहा - ‘खरीदा वही जाता है जो बिकता है।’ इस सूत्र की तरफ ध्यान नहीं गया। सामान यदि बाजार में दुकानों पर उपलब्ध है तो बिकेगा ही। देश भक्ति और राष्ट्र प्रेम के भावावेग में हम भूल गए कि रोज सुबह हमारे साथ कवायद करनेवाले अनगिनत सेवक चीनी सामान के विक्रेता हैं। हम भूल गए कि इनसे कहें कि यह सामान मत बेचो। हम भूल गए कि अपनी संस्कृति और धर्म-रक्षा के लिए कुछ भी कर गुजरनेवाले अनगिनत सैनिक हमारे पास हैं। वेलेण्टाइन डे पर बधाई पत्रों की दुकानों को ध्वस्त कर देनेवाले अपने वीरों को हम भूल गए। हम उन्हें ही कह सकते थे कि चीनी सामान बेचनेवाली दुकानों पर अपनी ‘कृपा दृष्टि’ डाल दें। गौ रक्षा के लिए और लव जेहाद का नाश करने के लिए प्राण लेने में भी न हिचकनेवाले शूरवीर हमें याद नहीं आ रहे। पार्टी में संगठन मन्त्री और सरकार में मन्त्री कौन बने, इस व्यस्तता में हम भूल गए कि हम अपनी ही सरकार से चीनी सामान पर प्रतिबन्ध लगाने का आदेश जारी न करा पाए। हमें एक ही बात याद रही - देश के लोग देश भक्ति और राष्ट्र प्रेम भूल न जाएँ इसलिए घर-घर जाकर याद दिलाएँगे। लोगों को मालूम होना चाहिए कि हमें देश की और उनकी कितनी फिक्र है!


एक ऑडियो इन दिनों वाट्स एप पर खूब चल रहा है। मुझे अब तक सत्रह मित्रों से प्राप्त हो चुका है। इनमें से तीन ऐसे हैं जो खुद के सिवाय किसी को भी देश भक्त नहीं मानते। किन्हीं डाक्टर अनुराग के, लगभग साढ़े तेरह मिनिट के इस ऑडियो में अनेक छोटे-छोटे सवाल पूछे गए हैं और अनेक छोटी-छोटी जानकारियाँ दी गई हैं। जैसे, यदि चीन हमारा दुश्मन है तो प्रधान मन्त्री ने अब तक विरोध क्यों नहीं जताया? वे तीन बार चीन जाकर भारत में निवेश करने का आग्रह कर चुके हैं! हम कौन-कौन सा सामान नहीं वापरें या नहीं खरीदें? घर, दफ्तर, संस्थानों, हमारे दैनन्दिन जीवन में काम आ रहा कौन सा सामान ऐसा है जो चीन में न बना हो या जिसमें चीनी सामान न लगा हो? आधुनिक चिकित्सा उपकरणों के लिए हम विदेशों पर ही निर्भर हैं। इनमें से लगभग अस्सी प्रतिशत उपकरण पूर्णतः या आंशिक चीनी ही हैं। हम चीन से आयात बन्द क्यों नहीं कर देते? चीन अपने सकल निर्यात का अधिकतक तीन प्रतिशत ही भारत को निर्यात करता है। वह हम पर निर्भर नहीं है। इसके समानान्तर हम अपने सकल निर्यात का ग्यारह प्रतिशत निर्यात चीन को करते हैं। हम यह नुकसान उठाने को तैयार हैं? भारत में सत्ताईस हजार चीनी रहते हैं। इन्हें चीन क्यों नहीं भेज देते? लेकिन चीन में लगभग साढ़े चार लाख भारतीय काम कर रहे हैं। उनके लिए हमारे पास रोजगार हैं? चीनी सामान से जुड़े व्यापार, उत्पादन पर लगभग आठ करोड़ परिवार (लगभग चालीस करोड़ लोग) निर्भर हैं। इनके रोजगार का क्या होगा? खास कर तब जबकि आजादी के बाद से अब तक कुल नब्बे लाख सरकारी नौकरियाँ ही मिली हैं। 

अपनी गलती, अक्षमता, निष्क्रियता, अपनी काली करतूतें छुपाने का सबसे बढ़िया उपाय है - सामनेवाले को गलत, अक्षम, निकम्मा, चोट्टा-डाकू साबित करना शुरु कर दो। लेकिन इससे सचाई नहीं बदलती। डॉक्टर अनुराग के अनुसार स्कूलों में दिया जा रहा मध्याह्न भोजन तो स्थानीय स्वयम् सेवा समूहों द्वारा ही उपलब्ध कराया जा रहा है, चीन से नहीं। लेकिन सरकारी आँकड़ा है कि इस मध्याह्न भोजन से अब तक सोलह हजार बच्चे मर चुके हैं। नकली/घटिया स्वदेशी दवाओं से छियासी हजार लोगों की जानें चली गईं। ऐसी ही स्वदेशी दवाओं से कोलकोता में आठ हजार बच्चे मर गए। डॉक्टर अनुराग के अनुसार यह भी सरकारी आँकड़ा है। चीनी सामान के बहिष्कार के आह्वान को ‘ढकोसला’ बताते हुए डॉक्टर अनुराग पूछते हैं - ‘अपने पीएम चीनियों को भारत में आकर सामान बनाने को कह रहे हैं। उनका बनाया सामान न खरीद कर हम अपने पीएम का निरादर नहीं कर रहे? उनकी मेहनत पर पानी नहीं फेर रहे?’ डॉक्टर अनुराग के अनुसार हम चीन का फायदा कम और अपना फायदा ज्यादा कर रहे हैं। चीनी तकनीक का उपयोग कर हम आगे बढ़ रहे हैं। भारत में चीनी सामान की बिक्री का कुल चार प्रतिशत पैसा चीन को जाता है। शेष छियानवे प्रतिशत भारत में ही रहता है। साल में दो बार भारतीय और चीनी सेनाएँ साथ-साथ युद्धाभ्यास कर, परस्पर अनुभवों का लाभ लेती हैं। सच तो यह है कि हमारा स्वदेशी सामान चीनी सामान से कम गुणवत्तावाला और मँहगा है। देश भक्ति के नाम पर यह सब करने के बजाय हमें प्रतियोगिता कर खुद को बेहतर साबित करना चाहिए। यही चीन को सच्चा और प्रभावी जवाब होगा। 

मैं भी उलझन में हूँ। जिन तरीकों, माध्यमों से चीनी सामान के बहिष्कार का अभियान चलाया जा रहा है उनमें चीन है। मैं जिस कम्प्यूटर पर यह सब लिख रहा हूँ, वह चीनी पुर्जों से ही बना है। जिस इण्टरनेट से इसे अखबार तक भेज रहा हूँ, उसमें भी चीन शामिल है। जाहिर है, समूचा अभियान एक नकली लड़ाई है। योद्धा प्राणों की आहुति देने की मुद्रा में लकड़ी की तलवारों से दुश्मन को मौत के घाट उतारने के लिए जूझ रहे हैं। मुखौटों की त्यौरियाँ चढ़ी हुई हैं। देश की फिक्र का जिक्र करने में मुखौटों की आँखों से आँसू धार-धार बह रहे हैं। पपोटे सूज गए हैं।

ठीक वक्त है कि हम अपनी-अपनी भूमिका तय कर लें।
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(दैनिक ‘सुबह सवेरे’, भोपाल में, 03 अगस्त 2017 को प्रकाशित)

5 comments:

  1. आत्ममंथन करने की जरूरत है, हरेक दृश्य जो दिखता है, वह सही है या नहीं हमें जिसमें महारत हासिल है वह दुनिया को पहुंचाने के लिए प्रयास करना है, एवं जो उपयोगी है वह दुनिया से स्वीकार करना ही पड़ेगा, यह एक सनातन सत्य है। आदरणीय आपका यह लेख सामायिक है, धन्यवाद।

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  2. Aap ka vicharbilkul sahi Hai . Salaam

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  3. चीनी (शक्कर) की तरह चीनी सामान भी भारत की रग रग में समाया हुआ है,हमारे यहाँ कथनी और करनी हमेशा अलग अलग रही है । हम सब हाथी के दांत हो गए है ।

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  4. हम उस दौर में पहुँच गए हैं, जहाँ गरीबों के पेट पर लात मारना, सताए हुओं को अधिक सताना ही देश भक्ति का प्रमाण हो गया है। हम चीन में बनाए कम्प्यूटर पर लिखेंगे, काम करेंगे लेकिन फुटपाथ पर बैठे रेहड़ीवाले को जुतियाएंगे और अपनी मूंछों पर ताव देंगे कि देखा देशद्रोही को सजा दे दी। सेल्फ़राइटियसनेस के ऐसा दौरा पड़ा है कि सभी के हाथ कानून से भी ज्यादा लंबे और पुलिस की लाठी-गोली से भी ज्यादा घातक हो गए हैं। यह दौर खुद को फ़न्ने खां होना सिखाता है, जबकि वास्तविकता यह है कि दिनोदिन अपनी इन्हीं हरकतों की वजह से फ़िसड्डी हुए जा रहे हैं। सोशल मीडिया लोगों को जिज्ञासु, तर्कशील, विवेकी बनाने के बजाए उन्हें हिंसक,पाखंडी, ढीठ, सेल्फ़राइटिएस और विवेकहीन बना रहा है। यह लेख लोगों में विवेक जगाए, यही आकांक्षा है।

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