हेप्पी शिवरात्रि

कल, शिवरात्रि का पूरा दिन बिस्तर में बीता। साले की बिटिया का विवाह था। पन्द्रह की शाम ससुराल गया था। उन्नीस की शाम लौटा। वहाँ काम-धाम तो कुछ किया नहीं किन्तु लौटने पर थकान ने बुरी तरह घेर लिया। पोर-पोर में दर्द और पूरे शरीर में एँठन। इतनी और ऐसी कि कुछ नहीं कर पाया। मेरे पुत्रवत मित्र के लिए एक अत्यावश्यक आवेदन तैयार करना था। वह भी नहीं कर पाया। दर्द निवारक गोलियों से आराम तो मिला लेकिन काफी देर से - रात होते-होते। इस समय, सुबह के सवा छह बजे जब यह पोस्ट लिख रहा हूँ तो, एँठन और दर्द का स्पर्श बना हुआ है तो सही किन्तु तनिक अच्छा लग रहा है।

कल दिन भर मे कोई अठारह एसएमएस आये। सब के सब शिवरात्रि को लेकर। दो-एक सन्देश ‘फारवर्ड’ किए हुए थे, शेष सब अलग-अलग इबारत के। किन्तु एक बात न्यूनाधिक सबमें समान थी - ‘हेप्पी शिवरात्रि।’ यह मेरे लिए सर्वथा नया अनुभव था।

व्यक्तिगत स्तर पर मैं आस्तिक भले ही न होऊँ किन्तु ‘ईश्वरवादी’ तो हूँ ही। मेरा ‘ईश्वर’ साकार भी है और निराकार भी। ऐसा तत्व जो मेरा सबसे पहला विश्वसनीय मित्र है। सदैव साथ बना रहनेवाला। शायद इसी कारण मैं उतना कर्मकाण्डी नहीं हो पाया जितना कि कोई ‘आस्तिक’ लोक-प्रचलित अर्थों में होता है या होना चाहिए। इसीलिए मेरे लिए शिवरात्रि का अर्थ ‘सृजन के प्रारम्भ का शुभ-शकुनी दिन’ है। ऐसे दिन मैं बिस्तर में था।

किन्तु मैं भले ही बिस्तर में था और भले ही पीड़ा और एँठन से परेशान था किन्तु था तो फुरसत में! सो, एसएमएस करनेवाले कुछ मित्रों से बात की। शिवरात्रि पर एसएमएस करने को लेकर उनसे पूछताछ की। उनके जवाब मेरे लिए अपने आप में एक नया अनुभव रहे। ग्यारह लोगों से बात की। उनमें से कुल दो ऐसे निकले जिन्होंने उपवास कर रखा था और शिव दर्शन को मन्दिर गए थे। शेष नौ में से कोई भी मन्दिर नहीं गया था और किसी ने उपवास नहीं किया था। इनमें से दो ने तो होटल पर, जलेबी-पोहा का नाश्ता करते हुए ‘हेप्पी शिवरात्रि’ वाले एसएमएस किए थे। शिवरात्रि पर ऐसे एसएमएस भेजने के पीछे उनका अभीष्ट जानना चाहा तो सबने एक ही जवाब दिया - ‘हिन्दू धर्म और संस्कृति की रक्षा करने और बढ़ावा देने के लिए’ उन्होंने यह ‘कर्तव्य’ निभाया।

मैं खुश नहीं हो पाया। अकेले में हँस भी नहीं पाया। उलटे, पीड़ा और एँठन में बढ़ोतरी अनुभव हुई। धर्म तो हमारे आचरण में होना चाहिए! किन्तु वैसा कर पाना तनिक कठिन काम है। किन्तु धार्मिक होने के बजाय धार्मिक दिखना अधिक आसान है। अधिक नहीं, बहुत ही आसान है। सो वही कर लिया जाए। हम वही तो कर रहे हैं!

ऐसे में, अब, चौबीस घण्टे बाद ही सही। हेप्पी शिवरात्रि।

7 comments:

  1. मोबाइल नंबर दुरुस्‍त, अपडेट करने का अवसर भी देते हैं, त्‍योहारों पर आए एसएमएस.

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  2. आप स्वयं कह रहे हैं कि आप ईश्वरवादी हैं परन्तु आस्तिक नहीं है. इस कथन मुझे कुछ विरोधाभास लग रहा है. संभव है मेरी अपनी परिभाषाएं दोषपूर्ण हों.

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  3. अचानक ही हिंदु धर्म की रक्षा करने का विचार युवा वर्ग मे तेजी से फ़ैलता जा रहा है। फ़लां जगह मंदिर का घंटा बजाने नही दे रहे तो ढिका जगह गायो का कत्ल हो रहा है जैसे मैसेज धड़ाधड़ आदान प्रदान किये जा रहे है।

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  4. sahi hai, kuchh log 'Bhaagwan' par bharosa karte hain aur kuchh bhagwan par....jaise ki............

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  5. बाबा विश्वनाथ भी एसएमएस का बम्बर्डमेण्ट नहीं सह सकते। अपना मोबाइल फैंक कर किसी श्मशान में धूनी रमाने चले गये होंगे!

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  6. धर्म तो हमारे आचरण में होना चाहिए!..satya vachan

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  7. उत्साह में हम कुछ भी या सब कुछ फारवर्ड कर जाते हैं...

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