कांग्रेस के बाल ठाकरे


चिदम्बरम के वक्तव्य पर गुस्सा मत कीजिए। उन पर दया भी मत कीजिए। सहानुभूति तो बिलकुल ही मत जताईए। वे अपना अपराध स्वीकार तो कर रहे हैं? और अपराध ही स्वीकार नहीं कर रहे! अपनी और अपनी पुलिस की अकर्मण्यता और विफलता को भी स्वीकार कर रहे हैं।

नासमझ लोगों के साथ यही दिक्कत है। असाहित्यिक नासमझों के साथ यह दिक्कत कई गुना हो जाती है। वे केवल लिखे, छपे, बोले शब्दों को ही पकड़ते हैं। जो नहीं लिखा गया है, जो छापा नहीं गया है और जो नहीं बोला गया है उसे समझने के लिए ये नासमझ क्षण भर की भी मेहनत नहीं करना चाहते। ये लोग अपने प्रेमी या प्रमिका से भी पत्थरमार शैली में ही ‘आई लव यू’ सुनना चाहते हैं। नफासत बरतना और नाजुक मिजाजी से बात करना-सुनना बिलकुल नहीं जानते।

चिदम्बरम की बातों को समझने के लिए पहले यह शेर पढ़ें और समझने की कोशिश करें। यदि समझ लेंगे तो चिदम्बर पर बरसने के बजाया उनकी पीठ थपथपाएँगे -

जिन्हें हम कह नहीं सकते, जिन्हें तुम सुन नहीं सकते।
वही कहने की बाते हैं, वही सुनने की बातें हैं।

लेकिन जो लोग चिदम्बर के शब्दों को पकड़े बैठ गए हैं, उनसे क्या उम्मीद करना? चलिए, पत्थर मार शैली में ही सुन लीजिए।

चिदम्बर साफ कह रहे हैं कि उन्हें खूब पता है कि दिल्ली में अपराध कौन कर रहे हैं। दिल्ली में हो रहे अपराधों के लिए दिल्लीवाले जवाबदार नहीं हैं। दिल्लीवाले तो निरपराध हैं। ये तो दिल्ली से बाहरवाले हैं जो दिल्ली में लूटमार और मारकाट मचाए हुए हैं। चिदम्बरम यह भी कह रहे हैं कि इन अपराधियों के रहने की जगहें भी उन्हें मालूम हैं। ये सारे अपराधी, अवैध झुग्गी-झोंपड़ियों में रहते हैं। झुग्गी-झोंपड़ियों की बात कह कर चिदम्बरम ने यह भी कह दिया है कि अन्य प्रान्तों से आकर सम्भ्रान्त बस्तियों में बस जानेवालों पर नजरें न डाली जाएँ। याने, कम से कम चिदम्बरम पर तो नजर नहीं ही डाली जाए। हालाँकि उनके वक्तव्य के लिए नादान, नासमझ लोग चिदम्बरम को ही अपराधी करार देने पर तुले हुए हैं। नहीं, चिदम्बर अपराधी नहीं हैं। दिल्ली सरकार या दिल्ली नगर निगम या दिल्ली महा नगर पालिका का रेकार्ड उठाकर देख लो - झुग्गी-झोंपड़ीवाली किसी भी बस्ती में चिदम्बरम के नाम की झुग्गी या झोंपड़ी नहीं मिलेगी। अपना पक्का दावा।

यह वक्तव्य देकर चिदम्बर ने महाराष्ट्र में नए राजनीतिक समीकरण के रास्ते भी खोल दिए हैं। वहाँ की, अपने मर्द-मराठा शरद पँवार वाली एनसीपी, जब जी चाहे, यूपीए सरकार को हिला देने के लिए कांग्रेस को आँखें दिखाने लगती है। बिलकुल उसी तरह जिस तरह गरीब की जोरु को भौजाई कह कर कोई भी मनचला छेड़ देता है। चिदम्बरम ने इशारा नहीं किया, साफ-साफ कह दिया है कि जो काम मुम्बई में बाल ठाकरे कर रहे हैं, वही काम कांग्रेस अब दिल्ली में करेगी। जाहिर है, महाराष्ट्र में कांग्रेस और शिवसेना में दूरी कम होगी तो मर्द-मराठा वाली एनसीपी की रातों की निंदिया और दिन का चैन छिन जाएगा। राजनेता निर्जीव होकर रह लेगा। कुर्सी के बिना नहीं रह सकता। सो, चिदम्बरम ने कांग्रेस में ‘बाल ठाकरे शैली’ की शुरुआत कर, यूपीए की नींव पक्की करने का नेक काम भी कर दिया है।

इसलिए चिदम्बरम के वक्तव्य पर गुस्सा मत कीजिए। उन पर दया भी मत कीजिए। सहानुभूति तो बिलकुल ही मत जताईए। सवाल उठाना है तो पूछिए कि जब सब कुछ चिदम्बरम को मालूम है तो उनकी पुलिस अपराधियों को पकडती क्यों नहीं? लेकिन यह टुच्चा सवाल करने से पहले खूब सोच लीजिएगा। चिदम्बरम के पास इसका दो-टूक, पत्थरमार शैली में जवाब तैयार है - दिल्ली पुलिस राजनीतिक अपराधियों की सुरक्षा में लगी हुई है। उनसे फुर्सत मिलेगी तो आपके सवाल का जवाब देने पर विचार करेगी।

सो, अपने आप को नासमझों, नादानों की जमात में शामिल मत कीजिए। चुप रहकर चिदम्बरम को सुनिए। उनकी साफगोई की दाद दीजिए, अपनी विफलता की साहित्यिक स्वीकृती के लिए उनकी सराहना कीजिए और उनसे सहमत हो जाईए।
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6 comments:

  1. हम ठहरे असाहित्यिक नासमझ :)

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  2. गहरी संवेदनशील सोच.

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  3. लेग ग्लांस कर बॉल डिफ्लेक्ट कर दीजिये।

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  4. यह बात तो सब को मालूम हे जी जो आज यह चिदम्बरम जी बता रहे हे, आप का धन्यवाद फ़िर से याद दिलाने के लिये

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  5. पुलिस राजनीतिक अपराधियों की सुरक्षा में लगी हुई है। उनसे फुर्सत मिलेगी तो आपके सवाल का जवाब देने पर विचार करेगी।

    बहुत पते की बात है। पुलिस अपना काम बखूबी कर रही है। 1984 में एक धार्मिक वर्ग का दमन हुआ, तब भी दंगा कराने वालों की सुरक्षा में लगी थी। अब शायद एक आर्थिक वर्ग की बारी है, अब भी प्राथमिकता तो हिंसा भडकाने वालोंकी सुरक्षा की ही रहेगी शायद।

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