आप तो डरते हैं


अब तो इस सबकी आदत हो गई। ऐसा न तो पहली बार हुआ और न ही अन्तिम बार। ऐसा होता रहा है और होता रहेगा। पहले गुस्सा आता था। अब हँसी आती है।

एक दिवंगत एजेण्ट की, समूह बीमा राशि का भुगतान कराने को लेकर कल थोड़ा अतिरिक्त व्यस्त था। काम तनिक कठिन भी था। भुगतान इन्दौर से जो होना था! सो, मोबाइल कान से हट ही नहीं पा रहा था। यह भुगतान कुछ ऐसे अविश्वसनीय रूप से हुआ कि मुझे इसके लिए अलग से पोस्ट लिखनी पड़ेगी। भुगतान हो गया तो आत्म सन्तोष हुआ।

थकान दूर करने के लिए टाँगे फैलाकर पसरा हुआ था कि प्रकाशजी दवे आ गए। पूरे कस्बे में वे ‘पिक्कू भैया’ के नाम से पुकारे और पहचाने जाते हैं। खूब बोलते हैं। इतना कि खुद ही कहते हैं - ‘मुझे रोकते क्यों नहीं? मैं बोलते-बोलते थक जाता हूँ।’ यह अलग बात है कि उन्हें जब-जब भी रोका-टोका जाता है, वे हर बार ‘मुझे बोलने दो यार! टोका-टाकी मत करो’ कह कर टोकनेवाले की बोलती बन्द कर देते हैं।

उन्हें देख कर थोड़ा अनमना तो हुआ किन्तु सोचा कि मुझे तो केवल सुनना ही सुनना है। बोलने की मेहनत नहीं करनी है। सो, पसरी हालत में ही उनकी अगवानी की। उनके आने की वजह पूछने की जरूरत किसी को नहीं पड़ती और मुद्दे की बात पर आने में उन्हें देर नहीं लगती। मैं स्थानीय साप्ताहिक ‘उपग्रह’ में ‘बिना विचारे’ शीर्षक से स्तम्भ लिखता हूँ। इस ब्लॉग पर प्रकाशित पोस्टें ही प्रायः वहाँ छपने को दे देता हूँ। पिक्कू भैया ‘उपग्रह’ के नियमित पाठक हैं। आज वे ‘उपग्रह’ के ‘बिना विचारे’ से ही शुरु हुए। मेरे लिखने की प्रशंसा शुरु करते-करते, अठारह सितम्बर वाली अहम् की क्रूरता पोस्ट पर आ गए। उसकी खूब तारीफ की। बोले - ‘आपने तो जान ले ली। पढ़ते-पढ़ते रोना आ गया।’

और यह कहते ही वे मुद्दे की बात पर आ गए - ‘आप इतना अच्छा लिखते हो तो थोड़ा लोगों का भला भी कर दिया करो!’ मुझे तो चुप ही रहना था। बोले - ‘एक जनहित का मामला है। उसे उठाइए। पूरे जिले का भला हो जाएगा आपकी कलम से।’ मैंने सवालिया नजरों से उन्हें देखा। उन्हें अच्छा लगा। बोले - ‘ये जो अपना एस. पी. है ना? बहुत ही भला आदमी है। यह काफी कुछ करना चाहता है लेकिन इसके विभाग के लोग ही इसे कुछ करने नहीं दे रहे।’ इस बार मैंने थो ऽ ऽ ड़ा सा उठंगा होते हुए उनकी ओर देखा। मैं उन्हें ध्यान से ही नहीं, जिज्ञासा भाव से भी सुन रहा हूँ, यह देख वे उत्साहित हुए और जारी रहे - ‘ये अपना एस. पी. तो अपने शहर को गुण्डों-बदमाशों से, बिना परमिटवाले टेम्पो-ऑटो से, अतिक्रमण से मुक्त करना चाहता है। लेकिन डी. आई. जी., सी. एस. पी. और यातायात सुबेदार इसे कुछ भी नहीं करने दे रहे। इन तीनों ने इसके खिलाफ गुट बना लिया है। तीनों ही खूब माल कूट रहे हैं, अपना-अपना घर भर रहे हैं। बेचारा एस. पी. ईमानदार है। ये तीनों बेईमान इसे कुछ भी नहीं करने दे रहे।’ कह कर पिक्कू भैया ने इस सन्दर्भ से जुड़े बीसियों किस्से सुना दिए और बोले - ‘इन बदमाशों की तिकड़ी का पर्दा फाश कीजिए और एस. पी. की मदद कीजिए ताकि शहर के लोगों का भला हो सके।’

मैंने कहा - ‘जरूर करूँगा और आप कह रहे हैं तो मदद तो करनी ही पड़ेगी। लेकिन इसके लिए पहले आप मेरी मदद कीजिए।’ पिक्कू भैया उछल कर बोले - ‘कहिए! कहिए!! क्या मदद करूँ?’ मैंने कहा - ‘आपने जो कुछ सुनाया वह सब मुझे याद रहेगा नहीं। आज तो वैसे भी थका हुआ हूँ। इसलिए आपने जो कुछ भी कहा है, वह संक्षिप्त मैं लिख कर छोड़ जाईए। मैं एक-दो दिन में ‘उपग्रह’ के लिए समाचार बना दूँगा।’

मेरी बात सुनकर पिक्कू भैया ऐसे चिहुँके मानो बिजली का नंगा, करण्टदार तार दिखा कर उसे छूने के लिए कहा जा रहा हो। बोले - ‘कैसी बातें कर रहे हैं आप? जानते नहीं कि मेरी पत्नी सरकारी नौकरी में है?’ उनकी दशा देख कर मुझे हैरत हुई। कहा - ‘अच्छी तरह जानता हूँ कि भाभीजी सरकारी नौकरी में हैं। लेकिन इस बात का उनकी नौकरी से क्या लेना-देना?’ पिक्कू भैया ने रोष भरी नजरों से मुझे देखा - ‘कैसी बातें कर रहे हैं आप? अरे! मैंने आपको लिख कर दे दिया और कभी भूले-भटके वह कागज पुलिसवालों के हत्थे चढ़ गया तो मेरी बीबी की नौकरी खतरे में आ जाएगी।’ बात अटपटी थी। मेरे गले नहीं उतरी। बोला - ‘मेरी पत्नी भी तो सरकारी नौकरी में है? सब जानते हैं कि मैं ‘उपग्रह’ में लिखता हूँ। आपके लिखे कागज पुलिसवालों तक पहुँचें या न पहुँचें लेकिन ‘उपग्रह’ तो पहुँचेगा ही। जिन तीन अफसरों के नाम आपने बताए है, उन तीनों ही अफसरों के दफ्तर में ‘उपग्रह’ डाक से जाता है। फिर मेरी पत्नी की नौकरी का क्या होगा?’

पिक्कू भैया ने बिलकुल भी परवाह नहीं की। बोले - ‘आपका क्या है? आप तो पत्रकार हो। सब आपको जानते हैं और आपसे डरते हैं।’ मैंने कहा - डी. आई. जी., सी. एस. पी. से तो मेरा आज तक मिलना नहीं हुआ। हाँ यातायात सुबेदार जरूर मेरी शकल पहचानता है। लेकिन वह अपनी नौकरी की परवाह करेगा या मेरी बीबी की नौकरी की?’ अपना आग्रह दोहराते हुए पिक्कू भैया बोले - ‘नहीं! नहीं!! भाभीजी की नौकरी पर आँच भी नहीं आएगी। मैं हूँ ना? आप तो लिखो।’

मुझे हँसी आ गई। कहा - ‘पिक्कू भैया आप मेरी बीबी की नौकरी पर आँच न आने देने की तो गारण्टी दे रहे हो और अपनी ही बीबी की नौकरी पर आनेवाले खतरे को लेकर परेशान हो रहे हो? जिस दम पर आप मेरी बीबी की नौकरी बचाने की गारण्टी दे रहे हो, उसी दम पर भाभीजी की नौकरी भी तो बचा सकते हो? चलो! जो भी किस्से सुनाए हैं, लिख कर दो ताकि अपन दोनों मिल कर एस. पी. की मदद कर सकें और अपने कस्बे के लोगों का ही नहीं, पूरे जिले के लोगों का भला कर सकें।’

पिक्कू भैया भड़क गए। जो कुछ कहा उसका मतलब था कि वे तो मुझे हिम्मतवाला, दम-गुर्देवाला, खतरे झेल कर सच के लिए मैदान मे कूद जानेवाला और ऐसे ही ‘कईवाला’ आदमी मान रहे थे। यह सब उनका भ्रम ही था। मैं तो वास्तव में डरपोक और अपनी बीबी की नौकरी पर आँच न आने देने के लिए, भ्रष्ट अफसरों की तिकड़ी की कारगुजारियों की अनदेखी करनेवाला स्वार्थी निकला।

मेरी तरफ हिकारत से देखते हुए उठे और चलते-चलते बोले - ‘मैं क्या समझ कर आया था और आप क्या निकले? आप तो डरपोक निकले। आप क्या लोगों का भला करेंगे? उसके लिए तो बड़ी हिम्मत चाहिए, जिगर चाहिए जो आप में तो है ही नहीं।’

वे चले गए। मैं उठंगी दशा में ही पसरा रहा। मुझे तनिक भी बुरा नहीं लगा, गुस्सा नहीं आया। न ही पिक्कू भैया पर दया आई। मैंने कहा न! अब तो इस सबकी आदत हो गई। पहले गुस्सा आता था। अब हँसी आती है।

और मैं सचमुच हँस रहा था - पिक्कू भैया को जाते हुए देखकर।

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11 comments:

  1. अब तो इस सबकी आदत हो गई। पहले गुस्सा आता था। अब हँसी आती है।

    ... पिक्कू भैया सर्व-व्यापी हैं।

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  2. पिक्कू भईया मिले थे..आपके लिए कहे हैं कि आप इतना अच्छा लिखते हो तो थोड़ा लोगों का भला भी कर दिया करो

    -हा हा!

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  3. लोग दूसरों के कन्धों पर बन्दूक रख कर चलाने मे माहिर है। अच्छा लगा संस्मरण। शुभकामनायें।

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  4. 7/10


    सामजिक सरोकार से जुडी उम्दा पोस्ट
    पठनीय

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  5. एक शेर है किन्ही वाते साब का आप से ही सुना था - "चाहते है सा की बदले ये अंधेरो का निजाम, पर की मेरे घर किसी बागी की पैदाइश न हो"

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  6. अच्छा लिखकर भला तो सबका कर ही रहे हैं आप।

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  7. वाह रे पिक्कू भईया, सामने वाला भी आप का बाप हे, मजे दार जी

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  8. हंसने में ही भलाई है!

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  9. बहुत जोरदार, दुर्गा नवमी एवम दशहरा पर्व की हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  10. पहले आता था प्यार पे गुस्सा
    अब गुस्से पे प्यार आता है

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