मोहन भागवत के लिए ठीक समय


मोहन भागवत, अब तक के सर संघ चालकों के मुकाबले तनिक अधिक मुखर, अधिक साहसी तथा अधिक पारदर्शी नजर आ रहे हैं। वे कहते अवश्य हैं कि भाजपा के माँगने पर ही संघ अपनी राय देता है किन्तु सारा जमाना देख रहा है कि वे भाजपा के बिना माँगे और बिना चाहे ही, भाजपा का भविष्य तय कर रहे हैं। यह ठीक समय है कि भागवत इस पार्टी को सम्भ्रम की दशा से उबार लें।फिलहाल भाजपा (और संघ के अन्य समस्त आनुषंगिक संगठनों) की दशा ‘संघ की नाजायज औलाद’ या फिर ‘संघ की रखैल’ जैसी बनी हुई है। ऐसा करके संघ कोई भी जिम्मेदारी उठाए बगैर, सारे राजनीतिक सुख भोगता है। किन्तु पारदर्शिता के इस जमाने में स्थितियाँ तेजी से बदल रही हैं।


भारतीय लोकतन्त्र को सेहतमन्द बनाए रखने के लिए मजबूत प्रतिपक्ष बेहद जरूरी है जिसकी पूर्ति फिलहाल केवल भाजपा के जरिए ही होती नजर आती है। इसलिए, भाजपा का मजबूत होना समय की माँग है। इसके लिए सबसे पहली जरूरत है कि भाजपा की सार्वजनिक स्थिति सुस्पष्ट हो। यह ‘दो-टूक’ रूप से तथा आधिकारिक रूप सेस्पष्ट हो जाना चाहिए कि संघ ही भाजपा है और भाजपा ही संघ है। इसके अपने नुकसान हो सकते हैं किन्तु भारतीय जनमानस की एक बड़ी उलझन दूर होगी और जो लोग भाजपा को लेकर ऊहापोहग्रस्त होकर भाजपा से छिटके हुए हैं, उन्हें निर्णय लेने में आसानी होगी।


मोहन भागवत जिस तरह से खुलकर खेल रहे हैं उससे अब केवल यह आधिकारिक घोषणा ही बाकी रह गई है कि संघ ही भाजपा है और भाजपा ही संघ है। यह घोषणा अब कर ही देनी चाहिए। इससे भाजपा की (और संघ की भी) सार्वजनिक विश्वसनीयता बढ़ेगी और भाजपा की सांगठनिक ताकत भी।


‘भई गति साँप छँछूदर केरी’ की दशा में जी कर भाजपा वैसे भी अविश्वसनीय और अछूत बनी हुई है। आज स्थिति यह है कि भाजपा से कोई भी राजनीतिक गठबन्धन करते समय प्रत्येक राजनीतिक दल भाजपा को सन्देह की दृष्टि से देखता है।


इससे भाजपा एक गम्भीर आरोप से भी बच सकेगी। राजनाथ सिंह घोषित कर चुके हैं कि भाजपा अपनी मूल नीति नहीं बदलेगी। इसकी मूल नीति है - एक जन, एक संस्कृति, एक राष्ट्र। यह नीति अन्य राजनीति दलों के खाँचे में फिट नहीं बैठती है। इसलिए, जब-जब भी गठबन्धन का अवसर आता है तब-तब, हर बार, केवल भाजपा को ही अपनी मूल नीति छोड़नी पड़ती है। यही कारण था कि एनडीए के गठन के समय भी भाजपा को अपने तीनों मुख्य मुद्दे (राम मन्दिर, धारा 370 तथा समान नागरिक संहिता) छोड़ने पड़े थे। इतिहास साक्षी है कि भाजपा के सिवाय किसी भी दल ने अपना कोई भी मुद्दा नहीं छोड़ा था। जाहिर है कि इन मुद्दों के कारण ही भाजपा ‘राजनीतिक अछूत’ बनी हुई थी। तब यही हुआ था कि भाजपा सत्ता में तो आ गई थी किन्तु राम मन्दिर न बना पाने का आरोप लगातार झेलती रही जिसका खामियाजा उसे, बाद में होने वाले प्रत्येक चुनाव में झेलना पड़ा और शर्मिन्दगी भी उठानी पड़ी। ऐसे में, यदि संघ, भाजपा को सुस्पष्ट रूप से ‘टेक ओव्हर’ करता है तो भाजपा इस दशा से उबरेगी। तब, भाजपा से गठबन्धन करने वाला राजनीतिक दल भली प्रकार जानकर गठबन्धन करेगा, भाजपा को राजनीतिक अछूत मान कर नहीं। और तब भाजपा को अपने मुद्दे छोड़ने के आरोप भी नहीं झेलने पड़ेंगे।


अनुभव यह हो रहा है कि भाजपा के माध्यम से संघ सब कुछ हासिल तो करना चाहता है किन्तु खोना कुछ भी नहीं चाहता। इसी बिन्दु पर मोहन भागवत को साहस दिखाना चाहिए। जिस प्रकार सबको खुश करने की कोशिश में आप किसी को भी खुश नहीं रख सकते उसी प्रकार बिना कुछ खोए आप कुछ हासिल भी नहीं कर सकते। मोहन भागवत इतने नादान नहीं हैं कि यह छोटी सी बात न समझते हों।


यह ठीक समय है कि मोहन भागवत रणनीतिक साहस बरतें और भारतीय राजनीति को नए तेवर दें।


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5 comments:

  1. अपकी पोस्ट देख कर खुशी हुयी आशा है आपके स्वास्थ्य मे सुधार हो रहा है। भागवत जी को आपका मशवरा बिलकुल सही है । अभी लगता नहीं है कि भाजपा का भविश्य सुधरेगा। शुभकामनायें

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  2. आपका सुझाव उत्तम है, लेकिन संघ, भाजपा की दुर्दशा से सबक लेने को शायद तैयार अभी भी नहीं है और नितिन गडकरी जैसे नामालूम नेता को भाजपा अध्यक्ष बनाने की तैयारी हो रही है… नितिन गडकरी को महाराष्ट्र के बाहर कोई नहीं जानता, भले ही उनकी छवि साफ़-सुथरी हो और वे विकास के पक्षधर हैं, लेकिन इतने भर से वोट नहीं मिलते… भारत की जनता विकास के नारे को वोट नहीं देती वह "करिश्मा" को वोट देती है, चाहे वह गाँधी परिवार का मीडिया द्वारा चालाकी से तैयार किया गया करिश्मा हो या फ़िर वीपी सिंह का बोफ़ोर्स दलालों के नाम की चिठ्ठी जेब में रखने वाला झूठ हो या फ़िर अभी जारी राहुल बाबा का छवि निर्माण हो… ऐसे में नरेन्द्र मोदी ही एकमात्र सही विकल्प हैं… उनके अध्यक्ष बनने पर वोटों का तेज ध्रुवीकरण होगा जो भाजपा के लिये फ़ायदेमन्द होगा और मोदी की विकास-पुरुष की छवि तो कायम है ही… देखते हैं क्या होता है…

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  3. भाजपा ही एक ऎसी पार्टी हो जायेगी जो अपने राष्ट्रीय अध्य़क्ष का परीचय अपने कार्यकर्ताओ से करायेगी .
    भागवत जी को सलाह है संघ को समहाले . एक भाजपा खत्म हो जाये दुबारा बन सकती है लेकिन संघ खत्म हो गया तो दुबारा नही बन पायेगा

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  4. ये समय भागवत जी के लिए अनुकूल भी हो सकता है औऱ बेहद प्रतिकूल भी। भाजपा की दुर्दशा को सुंदर दशा में ले जाने में बहुत हल्की लकीर है। पता नहीं ये लकीर पार हो पाएगी या नहीं। लेकिन, गडकरी जैसा नाम सामने आने से तो दुर्दिन ही ज्यादा नजर आ रहा है।

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  5. sangh ke andar aamul-chul pariwartan kee taiyaari chal rhi hai aur iski shuruaat to bhajpaa se hi honi chaiye .

    suresh jee ki is baat se sahmat "नितिन गडकरी जैसे नामालूम नेता को भाजपा अध्यक्ष बनाने की तैयारी हो रही है… नितिन गडकरी को महाराष्ट्र के बाहर कोई नहीं जानता, भले ही उनकी छवि साफ़-सुथरी हो और वे विकास के पक्षधर हैं,"

    aur sangh ko "widyabharti" kee aor khas dhyan dena chahiye .aajkal wahan kee sthiti lachar hai .

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