सत्ता, राजनीति और विश्‍वसनीयता

सत्ता और राजनीति अपनी विश्‍वसनीयता कैसे खोती हैं, इसकी छोटी सी बानगी गए दिनों मेरे शहर में देखने को मिली ।

एक सौ वर्ष से अधिक पुराने एक चर्च में रातों-रात आग लग गई । शीशम की लकड़ी की खूबसूरत मेहराबों , ऐतिहासिक महत्व वाला चर्च और यहाँ रखा रेकार्ड भस्म हो गया । जिस सवेरे यह अग्निकाण्ड हुआ, उसी दिन इस चर्च का स्थापना दिवस समारोह भी आयोजित था । मेरे प्रदेश में भाजपा की सरकार है और स्थानीय विधायक प्रदेश के गृह मन्त्री हैं । सो, हल्ला तो मचना ही था । इसाई समाज के लोग और उनके समर्थन में कुछ कांग्रेसी सड़कों पर उतर आए ।

पुलिस कुछ अतिरिक्त तेजी से हरकत में आई । उसने चर्च के चैकीदार को एकमात्र अपराधी के रूप में प्रस्तुत किया । खुद पुलिस उपमहानिरीक्षक ने पत्रकार वार्ता में, चैकीदार की उपस्थिति में उसकी अपराध स्वीकारोक्ति की सूचना सहित विस्तृत विवरण दिया । पुलिस के अनुसार, चैकीदार को मात्र एक हजार रुपये वेतन मिलता था उसमें से भी 500 रुपयों की कटौती की जा रही थी जो नवम्बर में पूरी होने वाली थी और उसके बाद उसे नौकरी से निकाला जाना था । चौकीदार खुद रोमन कैथोलिक इसाई है जबकि चर्च प्रोटेस्टेण्ट इसाइयों का है । पुलिस के अनुसार, चर्च-प्रबन्धन को सबक सिखाने के लिए चौकीदार ने अग्निकाण्ड रचा । उसकी योजना तो बहुत छोटे, (सांकेतिक) अग्नि-काण्ड की थी, मात्र सबक सिखाने के लिए । लेकिन आग उसकी इच्छा और कल्पना से कही अधिक विकराल हो गई । पुलिस ने यह भी बताया कि चौकीदार ने स्थानीय इसाई समुदाय के लोगों के सामने भी अपना अपराध स्वीकार कर सचाई बताई । लेकिन पत्रकारों को चौकीदार से पूछताछ का अवसर और अनुमति नहीं दी गई

इसाई समुदाय पुलिस की इस कहानी से सहमत और सन्तुष्‍ट नहीं हुआ । उसने विशाल प्रदर्शन कर, प्रशासन को ज्ञापन सौंप कर मामले की निष्‍पक्ष जाँच की माँग की । इसाई समाज का कहना है कि यह अग्निकाण्ड सोची-समझी साजिश का परिणाम है और चौकीदार की आड़ में वास्तविक अपराधियों को छुपाया और बचाया जा रहा है । चौकीदार के परिजन भी पुलिस की कहानी को झूठी बता रहे हैं ।

पत्रकारों ने प्रदेश के गृहमन्त्री से जब ऐसी जाँच के बारे में पूछा तो उन्होंने इसे तत्क्षण ही नकार दिया । उनका कहना था कि पुलिस के निष्‍कर्ष ही सच और अन्तिम हैं और चौकीदार खुद, इसाई समाज के सामने अपराध स्वीकार कर चुका है इसलिए अब किसी जाँच की आवश्‍यकता नहीं रह गई है । गृह मन्त्री का कहना था कि पुलिस की बात को आँख मूँद कर स्वीकार कर ली जानी चाहिए

गृह मन्त्री की यह बात दूसरों के गले तो नहीं उतर रही लेकिन खुद संघ परिवार के गले भी नहीं उतर रही है । संघ परिवार के कई वरिष्‍ठ सदस्यों का कहना है कि इस अग्निकाण्ड से संघ परिवार का सचमुच में कोई सम्बन्ध नहीं है और पुलिस के निष्‍कर्ष ही अन्तिम सत्य हैं । ऐसे में, गृह मन्त्रीजी को किसी भी जाँच की माँग तत्काल स्वीकार कर लेनी चाहिए । इन वरिष्‍ठों का कहना था कि मामले में जितनी पारदर्शिता बरती जाएगी उतनी ही, सरकार की और पार्टी की प्रतिष्‍ठा तथा विश्‍वसनीयता स्थापित भी होगी तथा बढ़ेगी भी । इन लोगों को आश्‍चर्य (और आपत्ति भी) है कि गृह मन्त्री ने निष्‍पक्ष जाँच की माँग क्यों अस्वीकार कर दी । शायद खुद गृह मन्त्री को अपने विभाग की कार्रवाई पर विश्‍वास नहीं हो रहा है ।

पारदर्शिता से घबरा कर, तन्त्र और सत्ता अपनी विश्‍वसनीयता कैसे खोते हैं, यह इसकी छोटी सी बानगी है ।

8 comments:

  1. समाज के विभिन्न तबकों(पत्रकार ,वकील,साहित्यकार आदि) के प्रतिनिधियों को मिल कर इस घटना की अ-सरकारी जाँच कर , उसकी रपट जारी करनी चाहिए । यही असरकारी भी होगी । विधान सभा चुनाव के इस साल में ऐसी घटनाओं को गम्भीरता से लेना चाहिए ।

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  2. चर्च सिर्फ 1 हजार रुपये मासिक वेतन देता था?
    क्या धार्मिक संस्थाओं पर न्यूनतम वेतन कानून लागू नहीं होते? इस एक हजार में से भी 500 रुपये किस मद में काट लिये जाते थे?
    धर्म अपनी जगह लेकिन पेट भी तो अपनी जगह है? धर्म के नाम पर श्रम कानूनों की अवहेलना स्वीकार नहीं की जानी चाहिये

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  3. पुलिस, प्रशासन और सरकार के काम में पारदर्शिता तो होनी ही चाहिए. मगर यह केस-बाई-केस के आधार पर न होकर नीतिपरक हो जो हर सरकार या पीडितों के समुदाय के हिसाब से बदलती न रहे. वेतन की बात में भी दम है - आख़िर गुजारे लायक तनख्वाह तो हर कर्मचारी को मिलनी ही चाहिए. निहित स्वार्थों से बंधे किसी अध्-कचरे गैर-सरकारी संगठन की जांच से क्या होगा? किसी एक दल या धर्म का ब्लैकमेल? वह तो पहले ही बहुत हो चुका - ऐसे संगठनों को कहीं तो गाल बजाना रोककर बापू के चरण चिन्हों पर चलकर सच्ची देशसेवा में लगना पड़ेगा.

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  4. बहुत अच्छा लिखा है .....जानकारी भी है ...

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  5. अफलातून जी के विचार से सहमत हूँ। पीयूसीएल की कोई इकाई आप के यहाँ हो तो वह यह अन्वेषण कर सकती है।
    यहाँ नगर निगम में ठेकेदार के जरिए सफाई कर्मचारी रखे जाते हैं जिस के लिए ठेकेदार को केवल प्रत्येक मजदूर केवल 100 रुपए प्रतिदिन दिए जा रहे हैं। 100 रुपया प्रतिदिन न्यूनतम मजदूरी है यह सारी मजदूर को दे दी जाए तो ईएसआई, सर्विस टेक्स आदि भरने पर 35 रुपया ठेकेदार को और भरना पड़ता है। फिर रिश्वत वगैरह भी देनी पड़ती है। आप सोचें मजदूर को क्या मिल रहा होगा।

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  6. निष्पक्ष जांच तो कम से कम होनी ही चाहिये। सरकार सबको बराबर न केवल देखे वरन दीखती भी लगे!

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  7. दोनो पक्ष पूर्वनिरधारण न कर जाँच करें. दोषी कोई भी हो सजा मिले.

    धार्मिक स्थानो पर शोषण होता है, 1000 रू. वेतन यही बता भी रहा है.

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  8. सही बात है जांच होनी ही चाहिए थी कि चर्च क्यों मात्र १ हज़ार रुपये ही देता था.

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