....और एक लिखी

फोन पर उधर से ओम प्रकाशजी मिश्र बोल रहे थे । ‘उपग्रह’ में प्रकाशित, ‘पिछड़े लोग’ वाली मेरी टिप्पणी की प्रशंसा भी कर रहे थे और ‘प्रेमपूर्वक प्रताड़ित’ भी । पूछ रहे थे अपने नाम और चित्र के साथ, मैं क्या समझ कर अपना ई-मेल पता देता हूँ ? देश के कितने लोगों के पास कम्प्यूटर है और यदि कम्प्यूटर है भी तो उनमें से कितनों के पास इण्टरनेट कनेक्शन है ? इसलिए मैं ने अपना अता-पता, फोन नम्बर और मोबाइल नम्बर देना चाहिए । पहली नजर में यह बात सबको ठीक लगेगी । लेकिन मुझे नहीं लगती ।

‘उपग्रह’ के पाठकों को मेरी बातें अपनी और अच्छी लगती हैं तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है ? और प्रशंसा किसे अच्छी नहीं लगती ? उससे तो देवता भी नहीं बचते ! लेकिन ‘उपग्रह’ के माध्यम से ही तो मेरा स्तम्भ ‘बिना विचारे’ पाठकों तक पहुँचता है । इसलिए मेरा मानना है कि उचित तो यही है कि पाठक मेरा उत्साहवर्धन ‘उपग्रह’ के माध्यम से ही करें । मिश्रजी मेरे वरिष्ठ हैं और एन.सी.सी. केम्पों में मैं ने उनकी ‘कमान’ में खूब परेड की है, सो उनसे फोन पर तो कहने का साहस नहीं हुआ लेकिन यहाँ उनकी अनुपस्थिति का लाभ उठा कर कह रहा हूँ । बेशक कम्प्यूटर और इण्टरनेट की सुविधा गिनती के घरों में है लेकिन जिन भी घरों में यह सुविधा है, वहाँ इसका नित्य उपयोग हो रहा है । इसके विपरीत, कलम और कागज घर-घर में हैं लेकिन पत्र लिखने को कोई तैयार नहीं । पत्र लिखना आज शायद सबसे कठिन और फोन पर बात कर लेना सबसे आसान काम हो गया है । लेकिन हमें याद रखना पड़ेगा कि कही बात हवा में गुम हो जाती है और लिखी बात बार-बार पढ़ी और पढ़वाई जा सकती है ।


पाठकों को कैसे बताऊँ कि उनका एक पत्र न केवल उनकी भावनाओं को सार्वजनिक करेगा बल्कि उससे उनकी, ‘उपग्रह’ की और मेरी भी इज्जत बढ़ेगी । एक पोस्ट कार्ड की बात है । काम कठिन जरूर है, नामुमकिन नहीं । समय तो हम सबके पास है लेकिन लिखने की आदत नहीं । सो, मेहनत कौन करे और जहमत कौन उठाए ? सो, 'उपग्रह' के पाठकों को मैं ने कहा - ‘‘हुजूर-ए-आला ! यह सब आप ही करेंगे क्यों कि केवल आप ही यह सब कर सकते हैं । ‘उपग्रह’ आपकी बात छापने को उतावला है । लिल्लाह ! आप कलम तो उठाईए !’’

1 comment:

  1. उपग्रह यहाँ कोटा में नहीं दिखाई देता शायद दक्षिणी गोलार्ध का कोई तारा है। इस लिए आप का स्तंभ भी हमारे लिए अपठित है।

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