गाँधी को कूड़ेदान में हम फेंकेंगे


खबर यह नहीं है कि लन्दन स्थित, मैडम तुसाद के विश्व विख्यात संग्रहालय में, महात्मा गाँधी की मोम-मूर्ति को, विश्व प्रसिध्द नेताओं की मूर्तियों के पास से हटा कर, संग्रहालय के आइस्क्रीम पार्लर के बाहर रखे कूड़ेदान के पास रख दिया गया है । खबर तो यह है कि गाँधी के साथ, अंग्रेजों द्वारा किए गए इस सम्वेदनहीन और अपमानजनक व्यवहार से कुछ भारतीय आहत हुए और उन्होंने ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री गार्डन ब्राउन को पत्र लिखकर इस स्थिति पर आपत्ति जताई और गाँधी की मोम-मूर्ति को पुनः सम्मानजनक स्थान पर लगवाने की माँग की ।
अंग्रेजों ने क्या नया, अनुचित, अनपेक्षित और अनूठा किया ? उन्होंने तो वही किया जो उनकी चिरपरिचित और स्थापित, जगजाहिर मानसिकता है । वे तो कालों से शुरू से ही नफरत करते रहे हैं । नस्लवाद और रंग भेद तो उनके रक्त में बसा हुआ है । उन्होंने तो गाँधी को रेल के डिब्बे में से ही फेंक दिया था । अंग्रेजों ने तो वही किया जो वे करते चले आ रहे हैं । उनकी इस करनी पर हमें बुरा क्यों लग रहा है ? हमें बुरा तो तब लगना चाहिए जब गाँधी को लेकर हमारा आचरण साफ-सुथरा और ऐसा हो कि दुनिया गाँधी के साथ अपमानजनक और असम्वेदन व्यवहार करने की सोच भी न सके । लेकिन हम गाँधी के साथ क्या कर रहे हैं ? हम ‘गाँधी को’ तो मान रहे हैं लेकिन ‘गाँधी की’ बिलकुल ही नहीं मान रहे हैं । (क्‍यों कि गाँधी को मानने में कुछ भी नहीं लगता जबकि गाँधी की मानने में प्राण निकल जाएंगे ।)
गाँधी के ‘सत्य, अहिंसा, प्रेम, असंग्रह’ को हमने ताक पर रख दिया है । उनका ‘मद्य निषेध’ हमारी अनेक राज्य सरकारों को सबसे बड़ा अवरोध अनुभव हो रहा है । गुजरात में कहने भर को मद्य निषेध लागू है लेकिन वास्तविकता यह है कि दुनिया की मँहगी से मँहगी दारू वहाँ, घर बैठे, चुटकियों में हासिल की जा सकती है ।
गाँधी की चिन्ता के केन्द्र में समाज का अन्तिम आदमी था । उनके वारिसों की चिन्ता यह है कि समाज का अन्तिम आदमी कब तक उनकी जिम्मेदारी बना रहेगा ? गाँधी की खादी बहुत मोटी, अपने ही हाथों से धुली और बिना कलफ वाली थी । गाँधी के वारिसों की खादी आज, ‘कड़क-कलफदार वर्दी’ हो गई है । जिस खादी के लिए गाँधी ने कहा था कि इसे (खादी को) ऐसे प्यार करो जैसे कोई माँ अपनी बदसूरत सन्तान को प्यार करती है । गाँधी के वारिसों ने उसी खादी के दम पर कितनों को बदसूरत बना दिया ?
गाँधी आचरण का तत्व है जिसे उनके वारिसों ने प्रदर्शन के तत्व में बदल दिया है । गाँधी ने कोई वाद नहीं चलाया लेकिन हम ‘गाँधीवादी’ बन कर अपने ही लोगों में सबसे अलग और सबसे ऊपर दिखना चाहते हैं । जो गाँधी इस देश की प्राण - वायु है उसे हमने ‘ब्राण्ड’ और ‘सेलीब्रिटी’ में बदल कर रख दिया है । हमें गाँधी की अवमानना की नहीं, हमारे ब्राण्ड के बदशकल होने की चिन्ता ज्यादा है । यदि हमारा ब्राण्ड ही ‘डीफेस’ हो गया तो उसे मानेगा कौन और अपनाएगा कौन ? गाँधी की मोम-मूर्ति कूड़ेदान के पास रखने पर भारतीयों को आपत्ति के केन्‍द्र में शायद यही चिन्‍ता है और शायद इसीलिए आपत्ति ‍ भी हो रही है ।
गाँधी आज होते तो वे इस बात का बुरा बिलकुल ही नहीं मानते । उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्यों कि वे अपने अन्दर देखते थे और आत्म परिष्कार हेतु सतत् प्रयत्नशील रहते थे । वे ‘आचरण’ पर जोर देते थे और ‘लोग क्या कहेंगे’ वाला जुमला उनके जीवन में कहीं स्थान नहीं पा सका था ।
गाँधी की मोम-मूर्ति के साथ आज जो कुछ भी हुआ है, उसके जिम्मेदार तो हम ही हैं । जब हमने ही गाँधी को अपने जीवन से खारिज कर दिया तो बाकी दुनिया क्या करती ? हमारी स्थिति बिलकुल उस सास जैसी है जिसकी बहू ने एक भिखारी को भीख देने से मना कर दिया तो सास फट पड़ी । उसने बहू को डाँटा कि घर की मालकिन अभी तो सास है सो बहू कोई फैसला कैसे ले सकती है ? सास ने भिखारी को दरवाजे पर बुलाया और कहा - भाग जाओ, तुम्हारे लिए यहाँ कुछ भी नहीं है ।
सो, गाँधी के प्रति असम्वेदन होने का, गाँधी की अवमानना करने का, गाँधी को खारिज करने का अधिकार तो हमारा है । गाँधी को कूड़ेदान पर फेंकना होगा तो हम खुद फेंकेंगे । कोई और यह दुस्साहस करे, यह हम सहन नहीं करेंगे ।

5 comments:

  1. "हम ‘गाँधी को’ तो मान रहे हैं लेकिन ‘गाँधी की’ बिलकुल ही नहीं मान रहे हैं", बिल्कुल सही बात कही है आप ने. गाँधी को तो उन लोगों ने भी नहीं माना जो केवल गाँधी के कारण ही आज़ादी मिलने के बाद गद्दी पर बैठे, और जिन का परिवार आज तक उस गद्दी का सुख भोग रहा है. एक अयोग्य व्यक्ति को अपना वारिस चुन कर गाँधी ने जो गलती की थी उस का खामिआजा आज देश ही नहीं ख़ुद गाँधी जी भुगत रहे हैं. अंग्रेजों की बात भी आपने सही कही.

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  2. हम ‘गाँधी को’ तो मान रहे हैं लेकिन ‘गाँधी की’ बिलकुल ही नहीं मान रहे हैं. बेहतरीन पंक्ति

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  3. हर कोई गांधी की गलतियाँ गिनाने लगता है। पर जनता ने उन्हीं को अपना नेता माना। अच्छे और बुरे तरीके से आजादी के आंदोलन का नेतृत्व उन्हीं ने किया।
    आज गांधी कुछ प्रासंगिक हैं तो कुछ अप्रासंगिक। लेकिन आज भी वे केवल भारत ही नहीं दुनियाँ भर में करोड़ों लोगों के दिलों में बसते हैं। जो ऐसी हरकतों से आहत होते हैं। गांधी को उन की मूर्ति को कहीं भी रख देने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। पर उन करोड़ों की चोटों का क्या जो जिन्दा अपने दिलों में गांधी को लिए घूमते हैं।

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  4. सही और सत्य कहा महाशय आपने.
    बहुत पीडा है आपके इस कथन मे.
    और गांधी को फेंकेंगे क्या हम तो पहले ही फेंक चुके हैं.

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  5. "हम ‘गाँधी को’ तो मान रहे हैं लेकिन ‘गाँधी की’ बिलकुल ही नहीं मान रहे हैं",

    गांधी को फेंकेंगे क्या हम तो पहले ही फेंक चुके हैं.

    बिलकुल जायज हैं आपकी उक्तियां। गांधी के इस देश में यही तो हो रहा है।

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