नोश फरमाईए : 'झन्‍नाट' रतलामी सेव

इशारों-इशारों में मेरे गुरू श्री रवि रतलाम ने चाहा है कि मैं आपको रतलामी सेव से रू-ब-रू कराऊं । सो, तैयार हो जाईए, आपकी खिदमत में पेश है - रतलामी सेव । क्षमा करें, 'झन्‍नाट रतलामी सेव'



हम रतलामियों को पांच व्‍‍यसन हैं । पहला : आने वालों को रीसिव करना, दूसरा : जाने वालों का रिजर्वेशन कराना, तीसरा : रिजर्वेशन केंसल कराना, चौथा : सी-ऑफ करना और पांचवा : झन्‍नाट रतलामी सेव पहुंचाना । पहले चार से रतलामी एक बार बच भी जाएं लेकिन वह रतलामी ही क्‍या जो पांचवें से बच जाए । जो इनसे जी चुराए, वह और कुछ भी हो सकता है, रतलामी नहीं हो सकता ।



सच तो यह है कि रतलाम के साथ तीन 'स' जुडे हुए हैं जो इसके पर्याय हैं । ये हैं - सोना, सेव और साडी । इनमें से सोना हर किसी की पहुंच में नहीं है, साडी कई लोगों की पहुंच में है लेकिन सेव सबकी पहुंच में है - राजा से लेकर रंक तक और बिडला से लेकर बैरागी तक की पहुंच में । सो, रतलाम की नमकीन सेव या कि बेसन सेव, रतलाम की 'सर्वहारा पहचान' है ।



सेव केवल रतलाम में ही बनती हो, ऐसा बिलकुल नहीं है । विभिन्‍न रूपों, स्‍वरूपों में प्राय: पूरे देश में सेव बनती, बिकती और खाई जाती है । किन्‍तु मालवा इसका मायका है । जैसी सेव मालवा में बनती है, वैसी और कहीं नहीं बनती । बेसन इसका एकमात्र कच्‍चा माल है और विभिन्‍न मसाले इसे जायकेदार बनाते हैं । नमक, मिर्ची, अजवाईन इसके सामान्‍य और सर्वमान्‍य आवश्‍यक तत्‍व हैं । जायके की आवश्‍यकतानुसार इन तत्‍वों के आनुपातिक मिश्रण को आटे की तरह गूंध कर, बारीक छेदों वाले 'झारे' से, भरपूर दबाव देकर निकाल कर खौलते तेल में तल कर सेव बनाई जाती है ।



लेकिन इस प्रकार बनी हुई सेव को रतलामी सेव मानने की चूक मत कर ली‍जि‍एगा । ऐसी बनी सेव खाकर कोई नहीं बता सकता कि यह सेव किस शहर की, किस दूकान की या किस कारीगर की बनाई हुई है । जबकि रतलामी सेव की पहली फक्‍की मारते ही आप खुद-ब-खुद बोल उठेंगे - 'यह रतलामी सेव तो नहीं ?' गोया सेव न हुई, 'ज्ञान बूटी' हो गई



आपकी बेचैनी बढाने में मेरी कोई दिलचस्‍पी नहीं । आपकी नाराजी का खतरा मोल लेने की हिम्‍मत मुझमें नहीं । सो, सीधे-सीधे 'झन्‍नाट रतलामी सेव' पर आ जाता हूं ।


रतलामी सेव के साथ 'झन्‍नाट' का अलंकरण लगता ही लगता है । इस सेव में लौंग, काली मिर्च और हींग न केवल अतिरिक्‍त रूप से बल्कि विशेष रूप से मिलाई जाती है और ये तीन चीजें ही इसे सारी दुनिया से अलग करती हुई इसकी अलग पहचान बनाती हैं । ये तीन 'तत्‍व' देश की अन्‍य किसी सेव में शायद ही मिलें । इनकी वजह से सेव में जो तेजी, तुर्शी और चिरमिराहट भरा तीखापन आता है, उसे ही रतलामी लोग 'झन्‍नाट' बोलते हैं । इसका यह 'झन्‍नाटा' ही इसे सारी दुनिया में बनने वाली सेव से अलग करता है ।



लेकिन केवल यही इसकी खासियत नहीं है । इसके लिए बेसन-मसाला तैयार कर, गूंधने से पहले इसमें भरपूर मात्रा में तेल मिलाया जाता है जिसे गृहिणियां 'मोइन' कहती हैं । इसके कारण सेव में जो नजाकत (मालवी में इसे 'फोसरापन' कहते हैं) आती है उसी के दम पर दावा किया जाता है क‍ि रतलामी सेव खाने के लिए दांतों की जरूरत नहीं होती, इसे होठों से ही चबाया जा सकता है । इसीलिए रतलामी सेव, 'आबाल-वृध्‍द' में समान रूप से लोकप्रिय है ।


यह सेव रतलाम के अर्थशास्‍त्र की रीढ है । आप यदि रतलाम आएं तो आपको न चाहने पर भी सौ-पचास जगह बनती सेव देखनी ही पडेगी । यह रतलाम का सबसे बडा कुटीर उद्योग है । गली-गली में सेव बनती रहती है । रतलाम में प्रतिदिन, कितने स्‍थानों पर, कितनी सेव बनती है, कितनी सेव रतलाम 'प्रापर' में बिकती है और कितनी सेव बाहर भेजी जाती है, इसका निश्चित आंकडा शायद ही मिल सके । यह तभी तय किया जा सकता है जब, सर्वेक्षण करने वाले, शहर की प्रत्‍येक गली में, एक ही समय पर मौजूद रहें । किश्‍तों में किया गया प्रत्‍येक सर्वेक्षण सदैव अधूरा ही साबित होगा । यह व्‍यवसाय रोजगार का सबसे बडा स्रोत है । इसने व्‍यापार के अभिनव तरीके भी प्रदान किए हैं । कुछ सेव निर्माता ऐसे हैं जो में अपनी सेव का एक दाना भी रतलाम में नहीं बेचते, सारी की सारी सेव बाहर भेजते हैं । कुछ नि‍र्माता ऐसे हैं जो केवल थोक व्‍यापारियों को अपना माल बेचते हैं । कई निर्माता सबके लिए अपना दरवाजा खुला रखते हैं । याने वे थोक दुकानदारों को भी माल देते हैं, फुट कर व्‍यापारियों को भी देते हैं और दुकान पर आए ग्राहक को पचास ग्राम तक सेव देते हैं । ऐसे दुकानदार 'एक भाव' याने कि 'फिक्‍स रेट' की नीति पर कायम रहते हैं । एक टन लीजि‍ए या पचास ग्राम - एक ही भाव । न तो किसी के साथ कोई रियायत न किसी से ज्‍यादा वसूली । लेकिन ऐसे निर्माता- व्‍यापारी गिनती के ही हैं ।



अधिकांश लोग, निर्माताओं/थोक व्‍यापारियों से सेव खरीद कर आसपास के देहातों में सप्‍लाय करते हैं तो कई लोग देहातों में अपनी दुकानें खोले बैठे हैं । रतलाम से बाहर के कई बडे शहरों में कई लोग इस सेव के दम पर ही प्रतिष्ठित जीवन-यापन कर रहे हैं । मुम्‍बई में ऐसे अनेक लोग हैं जो फोन पर रतलामी सेव की बुकिंग करते हैं, रतलाम के निर्माताओं से माल प्राप्‍त कर, पर्याप्‍त मुनाफा वसूल कर, मुम्‍बई में घर-घर सेव पहुंचाते हैं ।



मैं रतलाम का मूल निवासी नहीं हूं । सन् 1977 में मैं यहां आकर बसा । अपने पैतृक कस्‍बे में मैं भोजन के साथ नियमित रूप से सेव खाता रहा हूं । लेकिन रतलाम आकर मेरा सेव खाना छूट गया । छूट क्‍या गया, छोडना पडा । कारण ? वही 'झन्‍नाटा', इसकी खासियत, जिसका बखान कर-कर मैं हलकान हुआ जा रहा हूं । इतना तीखापन, इतनी तेजी, इतना चरपरापन मेरी बर्दाश्‍त के बाहर की बात है । इसका 'झन्‍नाटा' मेरे लिए गूढ रहस्‍य बना रहा । सचमुच में गहरी खोजबीन करनी पडी । हकीकत बताई डॉक्‍टर मित्रों ने । उनके अनुसार, रतलाम का पानी तनिक भारी है और इसी कारण यहां 'कब्‍ज रोगी' बडी संख्‍या में हैं । सम्‍भवत: इसी कारण लोगों पर 'आवश्‍यकता ही आविष्‍कार की जननी है' वाली बात लागू हुई होगी और लोगों ने अपने स्‍तर पर 'झन्‍नाटा' ईजाद किया होगा । चूंकि मैं 'इसका' शिकार नहीं हूं सो, 'झन्‍नाट रतलामी सेव' से दूर रहता हूं और मौका मिलते ही मनासा या नीमच से अपने लिए बेसन सेव मंगवाता रहता हूं ।



रतलाम से बाहर के लोगों के लिए 'झन्‍नाट रतलामी सेव' निस्‍सन्‍देह चुम्‍बकीय आकर्षण लिए हुए है । इसे खाने के बाद अच्‍छे-अच्‍छे 'सूरजवंशी', अगली सुबह 'ब्राह्म मुहूर्त' में उठने का पुण्‍य लाभ लेने को विवश हो जाते हैं । तब वे, कान पकड कर 'तौबा' करते हैं लेकिन जैसे ही मौका मिलता हैं, फिर 'झन्‍नाट रतलामी सेव' खाने से खुद को रोक नहीं पाते हैं और 'सामने है ढेर, टूटे हुए पैमानों का' वाली मिसाल को जिन्‍दा कर देते हैं । हां, सुरा प्रेमियों के बीच यह जबरदस्‍त लोकप्रिय है । उनका कहना है कि 'यह', 'उसका' जायका और सीटींग का आनन्‍द बढा देती है । वे, इसकी मुंह मांगी कीमत देने को तैयार रहते हैं । मनुष्‍यत्‍व को त्‍याग कर देवत्‍व प्राप्‍त करने को उतावले रहने वाले मेरे ऐसे कई मित्रों के लिए मुझे गाहे-ब-गाहे इसके पार्सल भेजने पडते हैं । वे अनुरोध नहीं करते, आदेश देते हैं । मैं लेतलाली करता हूं तो भयादोहन पर उतर आते हैं । कहते हैं, रतलाम आकर तुम्‍हें जबरन खिलाएंगे । मेरे पास बचाव का कोई रास्‍ता नहीं होता ।



समय के हिसाब से रतलामी सेव भी 'नवोन्‍मेष' प्राप्‍त करती रही है । आपको लहसुन की सेव, टमाटर की सेव, पालक की सेव भी मिल जाएगी । लेकिन ये सब 'फैन्‍सी आयटम' की तरह हैं - केवल वेरायटी और रेंज बढाने के लिए । असली सेव तो वही है - झन्‍नाट रतलामी सेव ।

रतलाम के लोक जीवन में इसकी अपरिहार्यता और लोकप्रियता, दोनों ही सम्‍भवत: 'चरम' पर हैं । रतलाम की प्रत्‍येक होटल के 'मेनू कार्ड' में आपको 'सेव की सब्‍जी' षामिल मिलेगी । इतना ही नहीं, शादी-ब्‍याह जैसे तमाम मंगल प्रसंगों पर आयोजित समारोहों में परोसे जाने वाले व्‍यंजनों में भी 'सेव की सब्‍जी' प्रमुखता से मिलेगी । इसकी तलाश में स्‍टाल-स्‍टाल, तांक-झांक करने वाले अलग से ही पहचाने जा सकते हैं ।


यह सब पढते-पढते आप के मुंह में पानी नहीं भी आया हो तो जिज्ञासा तो यकीनन मरोडें मारने लगी होगी । सारे काम छोडिए और फौरन रतलाम चले आईए । झन्‍नाट रतलामी सेव के साथ मैं आपकी खिदमत के लिए तैयार हूं । हां, भरपूर समय निकाल कर आइएगा । मुमकिन है आपको चिकित्‍सकीय सहयोग की आवश्‍यकता पड जाए । लेकिन घबराईए बिलकुल मत । ललचाई नीयत से तरस-तरस कर जीने के बजाय खा-खा कर दुखी होकर जीना ज्‍यादा अच्‍छा । इस मामले में गांधी को भूल जाइए और ओशो को याद रखिए । गांधी इच्‍छाओं के दमन में विश्‍वास रखते थे और ओशो उनके शमन में ।



रतलाम में आपका स्‍वागत है ।

8 comments:

  1. मजा आ गया, मस्त लिखा है!!
    आपकी ही तरह "झन्नाट" को मै भी नही झेल सकता।

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  2. ठीक है बैरागी भाई, हम कतई शमन नहीं करेंगे.
    तो कब भिजवा रहे हैं हमारा डिब्बा?

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  3. हम तो आसानी से झन्नाट झेल लेते हैं, हैदराबाद में नहीं मिलती सो सुरत से मंगवाते हैं।
    अब आपसे मंगवा लिया करेंगे।

    ( आप भी सोच रहे होंगे यह दोनो लेख लिख कर कैसी मुसीबत मोल ले ली, हर कोई आपको आदेश दे रहा है, नमकीन भेजने के लिये)

    www.nahar.wordpress.com

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  4. जबरदस्त झन्नाट...मेरे तो खाने का अभिन्न अंग है रतलामी सेव. :) अब तो यहाँ भी बड़े आराम से मिल जाती है.

    आते समय बता दूँगा-रिसिव कर लिजियेगा. लौटने का रिजर्वेशन भी करा ही दिजियेगा. और न आ पाया तो कैंसिल करने का शौक भी पूरा हो ही जायेगा आखिर आप खालिस रतलामी हैं. मैं तो बस पैदाईशी रतलामी हूँ. :)

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  5. रतलामी सेव का झन्नाट स्वाद आज इंटरनेट, हिन्दी चिट्ठाजगत् ने भी चख लिया. :) आपको धन्यवाद

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  6. झन्नाट और ब्रह्ममूहूर्त में उठा देनेवाला सेव खाना पड़ेगा. बहुत अच्छी जानकारी. ऐसे लेखों से पूरा भाषाई नेट समाज तर होता है.

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  7. दिल की कलम से
    नाम आसमान पर लिख देंगे कसम से
    गिराएंगे मिलकर बिजलियाँ
    लिख लेख कविता कहानियाँ
    हिन्दी छा जाए ऐसे
    दुनियावाले दबालें दाँतो तले उगलियाँ ।
    NishikantWorld

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  8. भईया आपके और रवि जी के पिछले लेखों से हम सेव माने एप्पल समझे थे लेकिन आज पता चला कि ये कुछ और ही है।

    वैसे अभी भी ठीक से क्लीयर नहीं हुआ, तो आप जरा एक डिब्बा हमें भी भेजने का कष्ट कर ही दें। :)

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